Angel
परी ने बही में उसके कर्मों का हिसाब देखा। बोली, "बही के हिसाब से तुम्हारे पास धन तो होना चाहिए था। क्या हुआ धन का?"बुढ़िया बोली, "क्या बताऊं? एक अमीर आदमी ने लूट लिया। दुनिया में अमीर ही सब कुछ माने जाते हैं, पर है वे शरीफ डाकू।" परी बोली, "देखो उस अमीर को जबरदस्ती यहां लाया जा रहा है इसलिए दरवाजे से हट कर खड़ी हो जाओ ताकि उसे नरक में धकेला जा सके।"बुढ़िया दरवाजे से हट गई। लेखाकार ने वही उठाकर बुढ़िया का कर्म लेखा पढ़ा। पढ़कर वह हैरान हो गया। बोला, "तेरी मौत कैसे हुई? तुझे तो अभी नहीं मरना था। यहां लिखा है कि तुम भूख से मरने ही वाली थी कि भोजन मिल गया। फिर यह सब क्यों हुआ। तू मरी क्यों? जरा मुझे ध्यान से किताब देखने दे।" लेखाकार ने फिर से बही के पन्ने पलटे और बोला, "जिस समय तुझे कहीं से खाने को भोजन मिल गया, तभी भूख-प्यास से व्याकुल अनाथ बच्चे ने हाथ फैलाए और तूने सारा भोजन उसे दे दिया। वह पेट भरकर चला गया और तू तड़प-तड़प कर मर गई।" परी ने कहा, "तू नेक और ईमानदार रही। तुझसे जो कुछ हो सकता था वह तूने सच्चे दिल से किया। लोभ, दाग और बेईमानी से दूर रही। तेरे मन में वाह-वाही की इच्छा कभी नहीं रही। तेरे मन में किसी के लिए मैल नहीं रहा। तुम्हारी जगह तो स्वर्ग में सुरक्षित है। तुम तो गलती से यहां पहुंच गई हो।"परी ने देवदूत से कहा, "जाओ, इसे स्वर्ग में ले जाओ।'देवदूत उसे स्वर्ग के दरवाजे पर ले गया। वहां स्वर्ग के देवता उसका स्वागत करने के लिए खड़े थे। स्वर्ग की अप्सराओं ने उसकी आरती उतारी। नई पोशाक पहनने के लिए दी। उस स्वर्ग के कुंड में स्नान कराया गया। बुढ़िया को दिव्य शरीर प्राप्त हो गया। अब वह एक अत्यंत सुंदर देवी बन गई थी और दासियां उसकी सेवा में लग गईं। अब सुनो उस अमीर का हाल। नरक दूतों ने उसे जलती रेत में घसीटा। वह खौलते हुए तेल के कड़ाहे में डाला गया। फिर उसे कांटों की सेज पर सुलाया गया। चारों तरफ आग ही आग वहां दिखाई पड़ती थी। इतने में यमराज वहां से गुजरे। उन्होंने यमदूत से कहा, "यह बहुत बड़ा पापी है। इसे कठोर से कठोर दंड मिलना चाहिए
इसके साथ तनिक भी रियायत करने की जरूरत नहीं है।" यमदूत यमराज की आज्ञा का पालन करने लगे। नरक की परी खड़ी खड़ी यह सब देख रही थी। वह संतुष्ट थी कि उसके साथ न्याय किया जा रहा है। कुछ दिनों के बाद स्वर्ग और नरक की सफेद और नीले पंखों वाली परियां आपस में मिलीं। दोनों में गहरी मित्रता थी। स्वर्ग की परी बोली, "बहन वह कमबख्त अमीर न जाने कैसे स्वर्ग के दरवाजे तक आ गया। मैंने उसके 'कर्म लेखा' की वही देखी तो पाया कि उसने अपने जीवन में सिर्फ एक बार ही बचपन में अच्छा काम किया था। उसने एक प्यासे कुत्ते को पानी पिलाया था। इसलिए वह स्वर्ग के दरवाजे के दर्शन कर सका।" नरक की परी कहने लगी, "बहन, उस बुढ़िया ने बचपन में एक बार अपनी बहन के हिस्से की रोटी चुराकर खा ली थी। इसी के कारण उसे नरक का दरवाजा देखना पड़ा।" स्वर्ग की परी बोली, "जहां बुढ़िया मरी थी, वह जगह अब तक जगमगा रही है और यह अमीर जहां जलाया गया वहां की जमीन सदा के लिए काली पड़ गई।" वह बोली, "अच्छी करनी का फल सदैव अच्छा मिलता है इसलिए मनीषी सदैव अच्छे कर्म करने पर जोर देते रहते हैं पर इंसान उनकी हिदायतों पर कम अमल करता है। जो अमल करते हैं उन्हें स्वर्ग और जो पाप कर्म में लिप्त हो जाते हैं उन्हें नरक की प्राप्ति होती है, उसे देखो न उस बुढ़िया को। कितनी सुंदर देवी बनी स्वर्ग में विचर रही है। देवियां उसे घेरे हुए हैं और उस अमीर आदमी को देखो। यमदूतों ने अभी उसका पीछा नहीं छोड़ा है।"इतना कहने के बाद दोनों परियां अपने- अपने रास्ते पर चली गईं। नरक की ओर से चीखने-चिल्लाने की पुकारें उभरती रहीं। जबकि स्वर्ग की ओर शांत और सुखद वातावरण बना रहा।
कर्मो का फल
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