साईबाबा की जीवनी 🚩🚩🚩

    •                   जय साईं बाबा
  •     साई नाथ जी का उपासना संग्रहालय
  1. भोजन में सभी प्राणियों का हिस्सा
शिरडी के लोग शुरू में साईं बाबा को पागल समझते थे लेकिन धीरे-धीरे उनकी शक्ति और गुणों को जानने के बाद भक्तों की संख्या बढ़ती गयी। साईं बाबा शिरडी के केवल पांच परिवारों से रोज दिन में दो बार भिक्षा मांगते थे। 

वे टीन के बर्तन में तरल पदार्थ और कंधे पर टंगे हुए कपड़े की झोली में रोटी और ठोस पदार्थ इकट्ठा किया करते थे। सभी सामग्रियों को वे द्वारिका माई लाकर मिट्टी के बड़े बर्तन में मिलाकर रख देते थे। कुत्ते, बिल्लियाँ, चिड़िया निःसंकोच आकर उस खाने का कुछ अंश खा लेते थे, बची हुए भिक्षा को साईं बाबा भक्तों के साथ मिल बाँट कर खाते थे

एक बार साईं के एक भक्त ने साईं बाबा को भोजन के लिए घर पर बुलाया। निश्चित समय से पूर्व ही साईं बाबा कुत्ते का रूप धारण करके भक्त के घर पहुंच गये। साईं के भक्त ने अनजाने में चूल्हे में जलती हुई लकड़ी से कुत्ते को मारकर भगा दिया। 

जब साईं बाबा नहीं आए तो उनका भक्त घर पर जा पहुंचा। साईं बाबा मुस्कुराये और कहा, "मैं तो तुम्हारे घर भोजन के लिए आया था लेकिन तुमने जलती हुई लकड़ी से मारकर मुझे भगा दिया।" साईं का भक्त अपनी भूल पर पछताने लगा और माफी मांगी। साईं बाबा ने स्नेह पूर्वक उसकी भूल को क्षमा कर दिया।

2. साईबाबा की महिमा से संतान का सुख🙏🙏

नामक एक स्त्री संतान सुख के लिए तरप रही थी। एक दिन साईं बाबा के पास अपनी विनती लेकर पहुंच गयी। साईं ने उसे उदी यानी भभूत दिया और कहा आधा तुम खा लेना और आधा अपने पति को दे देना।
लक्ष्मी ने ऐसा ही किया। निश्चित समय पर लक्ष्मी गर्भवती हुई। साईं के इस चमत्कार से वह साईं की भक्त बन गयी और जहां भी जाती साईं बाबा के गुणगाती। साईं के किसी विरोधी ने लक्ष्मी के गर्भ को नष्ट करने के लिए धोखे से गर्भ नष्ट करने की दवाई दे दी। इससे लक्ष्मी को पेट में दर्द एवं रक्तस्राव होने लगा। लक्ष्मी साईं के पास पहुंचकर साईं से विनती करने लगी।
साईं बाबा ने लक्ष्मी को उदी खाने के लिए दिया। उदी खाते ही लक्ष्मी का रक्तस्राव रूक गया और लक्ष्मी को सही समय पर संतान सुख प्राप्त हुआ
3.  साईबाबा का समाधी वाला दिन🚩🚩

साईं बाबा अपने अंतिम दिनों में अपने भक्तो से धार्मिक पुस्तके पढवाते थे और उन्हें उस पुस्तक का आंतरिक ज्ञान समझाते थे .यह हर दिन सुबह और शाम को होता था . 8 अक्टूम्बर 1918 वाले दिन बाबा साईं बहूत कमजोर हो गये . वे मस्जिद की दीवार पर बेठ गये. आरती और पूजा रोज की तरह होती थी . साईं बाबा के पास भक्तो को जाने नही दिया जा रहा था बाबा बीमार जो हो गये थे . कुछ लोग एक चीते के साथ गाव में आये कुछ तमाशा दिखा कर पैसा कमाने चीता भी बीमारी की वजह से कमजोर हो गया था . जब चीता बाबा के सामने आया तब साईं बाबा ने उस बीमार चीते की आँखों में देखा . चीते ने भी बाबा को इस तरह देखा की वो कह रहा हो की हे साईं बाबा मुझे अब मुक्ति दिला दो इस दुनिया से . चीते की आँखों में आंसू थे . बाबा ने उस चीते की मदद उसकी मुक्ति के साथ की .

बाबा साईं अपने अंतिम दिनों में दिनों दिन कमजोर होते जा रहे थे .पर उन्होंने अपने इस बीमारी में भी अपने भक्तो से मिलना उन्हें उड़ी देना उन्हें ज्ञान देना नही छोड़ा. वे तो अपना सबकुछ पहले से ही अपने भक्तो के नाम कर चुके थे . उनके सभी भक्त बाबा की बीमारी से बहूत दुखी थी और प्राथना कर रहे थे की साईं बाबा जल्दी ठीक हो जाए

4. अंतिम दिन 🙏🙏🚩

मंगलवार १५ ओक्टोम्बेर १९१८ विजयदशमी का दिन था साईं बाबा बहूत कमजोर हो गये थे . रोज की तरह भक्त उनके दर्शन के लिए आ रहे थे. साईं बाबा उन्हें प्रसाद और उड़ी दे रहे थे भक्त बाबा से ज्ञान भी प्राप्त कर रहे थे पर किसी भक्त ने नही सोचा की आज बाबा के शरीर का अंतिम दिन है . सुबह की ११ बज गयी थी . दोपहर की आरती का समय हो गया था और उसकी त्यारिया चल रही थी कोई देविक प्रकाश बाबा के शरीर में समां गया आरती सुरु हो गयी और बाबा साईं का चेहरा हर बार बदलता हुआ प्रतीत हुआ . बाबा ने पल पल में सभी देवी देवताओ के रूप के दर्शन अपने भक्तो को कराये वे राम शिव कृष्णा वितल मारुती मक्का मदीना जीसस क्राइस्ट के रूप दिखे आरती पूर्ण हुई .बाबा साईं ने अपने भक्तो को कहा की अब आप मुझे अकेला छोड़ दे . सभी वहा से चले गये साईं बाबा के तब एक जानलेवा खांसी चली और खून की उलटी हुई . तात्या बाबा का एक भक्त तो मरण के करीब था वो अब ठीक हो गया उसे पता भी न चला की वो किस चमत्कार से ठीक हुआ है वह बाबा को धन्यवाद देने बाबा के निवास आने लगा पर बाबा का सांसारिक शरीर तो येही रह गया था . साईं बाबा ने कहा था की मरने का बाद उनके शरीर को बुट्टी वाडा में रख दिया जाए वो अपने भकतो कि हमेशा सहयता करते रहेगें.

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